गुप्त नवरात्रि के दौरान भक्त मां भगवती की पूजा कैसे करे

नवरात्रि माँ भगवती की आराधना का पर्व है जिसे भक्तों द्वारा साल में चार बार मनाया जाता है। प्रकट नवरात्रि चैत्र और अश्विन में होने वाली नवरात्रि है। जबकि माघ शुक्ल पक्ष प्रतिपदा और आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा में होने वाली नवरात्रि गुप्तनवरात्रि है। हिंदू धर्म में गुप्त नवरात्रि का विशेष महत्व है। इस साल माघ महीने में पड़ने वाली गुप्त नवरात्रि फरवरी माह में शुरू होगी।

गुप्त नवरात्रि पूजा

गुप्त नवरात्रि में भी मां दुर्गा की नौ अलग-अलग स्वरूपों में पूरी भक्ति के साथ पूजा की जाती है। इन नवरात्रि के दौरान, भक्त मां की उनके नौ रूपों में पूजा करते हैं: शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री।
इसके अलावा, ऐसा कहा जाता है कि गुप्त नवरात्रि के दौरान 10 महाविद्या देवी तारा, त्रिपुरा सुंदरी, भुनेश्वरी, छिन्नमस्ता, काली, त्रिपुरा भैरवी, धूमावती और बगलामुखी की गुप्त रूप से पूजा की जाती है।

गुप्त नवरात्रि के महत्व

सनातन धर्म के अनुसार, तंत्र साधना, वशीकरण और इसी तरह के अन्य अभ्यासों का अभ्यास करने वालों के लिए गुप्त नवरात्रि बहुत महत्वपूर्ण है। कहा जाता है कि गुप्त नवरात्रि में मां अम्बे ऐसे उपासकों की भक्ति और तपस्या से प्रसन्न होती हैं।

जानिए इस साल की गुप्त नवरात्रि को क्या खास योग है

आपको बता दें कि माघ मास में पड़ने वाली इस समय की गुप्त नवरात्रि में रवि योग और सर्वार्थसिद्धि योग हैं। यह उन लोगों के लिए विशेष रूप से शुभ है जो घर खरीदना, भूमि की पूजा करना या कार खरीदना जैसे शुभ कार्यों को शुरू करना चाहते हैं। इस अवधि के दौरान निवेश करना भी फायदेमंद है।

माँ को कैसे प्रणाम करें

प्रातःकाल स्नान और अन्य नित्यकर्म से निवर्त होकर सूर्य देव को जल अर्पित करे और मां को प्रणाम करे और कलश, नारियल-चुनड़ी , श्रंगार के प्रसाधन, अक्षत, हल्दी, फलों और फूलों के साथ मां की पूजा करते हैं मां का श्रंगार करे । कलश सावधानी पूर्वक स्थापित किया जाना चाहिए । पूजा में लोहे या स्टील के कलश का प्रयोग नहीं करना चाहिए। कलश पर रोली से स्वस्तिक बनाकर सजाए।

उसके बाद जब पूजा शुरू करने का समय हो तो ‘ॐ पुंडरीकाक्षय’ मन्त्र का उच्चारण करें और अपने दुखों के निवारण के लिए देवी भगवती की पूजा व मंगलकामनाएं करें।

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पंडित भरत शर्मा जी

पंडित भरत शर्मा जी को समस्त प्रकार के अनुष्ठानों का प्रयोगात्मक ज्ञान एवं सम्पूर्ण विधि विधान की जानकारी उनके परम पुजयनीय गुरुदेव अनंतविभूषित महामंडलेश्वर श्री अतुलेशानन्द सरस्वती जी महाराज (श्री आचार्य शेखर जी महाराज) से उज्जैन मे रह कर प्राप्त हुई है।

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