शक्ति की साधना के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है इसमें महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती माताओं की महिमा का वर्णन है नवरात्र में मां दुर्गा की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है।
नवरात्र के 9 दिनों तक दुर्गा सप्तशती का पाठ विधि विधान से किया जाए तो मां भगवती अपने भक्तों पर विशेष कृपा करते हैं
दुर्गा सप्तशती को मां भगवती का स्वरूप ही माना गया है उसमें समाहित प्रत्येक मंत्र जागृत है जो मां की कृपा से शीघ्र ही प्रभाव डालते हैं सप्तशती का पाठ आप 12 महीने में कभी भी कर सकते हैं लेकिन नवरात्रि में इसका विशेष प्रभाव होता है।
दुर्गा सप्तशती पाठ की विधि लंबी है जिसे पुस्तक के माध्यम से ही संपन्न किया जा सकता है अतः आप गोरखपुर प्रेस से प्रकाशित दुर्गा सप्तशती पुस्तक का प्रयोग कर सकते हैं ।
दुर्गा सप्तशती पाठ प्रारंभ करने से पहले स्वयं का शुद्धिकरण कर गणेश पूजन, नवग्रह पूजन, षोडश मातृका पूजन, ज्योति/दीप पूजन ,कलश पूजन व दुर्गा सप्तशती पुस्तक पूजन करना चाहिए । पुस्तक को ऊंचे स्थान पर स्वच्छ कपड़ा बिछाकर रखें । दुर्गा सप्तशती का पाठ पुस्तक हाथ में लेकर नहीं पढ़ना चाहिए पुस्तक को किसी पाट पर रखकर ही पढ़ना चाहिए । सप्तशती का पाठ न तो बहुत उच्च स्वर में होना चाहिए ना ही बहुत मंद/मन ही मन में पड़ना चाहिए, पाठ हमेशा लयबद्ध तरीके से स्पष्ट उच्चारण के साथ मध्यम स्वर में होना चाहिए ।
दुर्गा सप्तशती पाठ विधि :-
- प्रोक्षण/शुद्धीकरण
(अपने ऊपर नर्मदा जल का सिंचन करना स्वयं का पवित्रीकरण) - आचमन -: चार बार आचमन करके हाथ धोबे
ॐ ऐं आत्मतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा।
ॐ ह्रीं विद्यातत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा॥
ॐ क्लीं शिवतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सर्वतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा॥ - संकल्प -: किसी भी कर्म करने के लिए संकल्प का महत्व महत्वपूर्ण होता है संकल्प के बिना सभी कर्म अधूरे माने जाते है
4.शापोद्धार – “ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं क्रां क्रीं चण्डिकादेव्यै शापनाशागुग्रहं कुरु कुरु स्वाहा”
(इस मंत्र का पाठ के आदि और अन्त में सात बार जप करें। ) - उत्कीलन- ‘ॐ श्रीं क्लीं ह्रीं सप्तशति चण्डिके उत्कीलनं कुरु कुरु स्वाहा।’
(इसका जप भी पाठ के आदि और अन्त में इक्कीस बार होता है।) - दुर्गाकवचपाठ (उच्च स्वर में पाठ)
- अर्गलास्त्रोतपाठ (प्रारम्भ उच्च स्वर में व शांत मुद्रा में समापन)
- कीलकपाठ (शांत मुद्रा में /मानसिक पाठ)
- रात्रिसूक्त
- नवार्णमंत्र “ऊं ऐं ह्री क्लीं चामुण्डायै विच्चै” की कम से कम एक माला
- सप्तशती के 13 अध्यायों का पाठ
- देवीसूक्तस्त्रोत
- मूर्तिरहस्य
- सिद्ध कुंजीका स्त्रोत
- क्षमा प्रार्थना
- आरती, पुष्पांजलि, प्रदक्षिणा, प्रसाद आदि
दुर्गासप्तशती के प्रथम अध्याय को प्रथम चरित्र
दूसरा, तीसरा व चौथा अध्याय को मध्यम चरित्र
एवं 5वे से लेकर 13वे अध्याय को उत्तम चरित्र कहते हैं।
जो श्रद्धालुगण पूरा पाठ (13 अध्याय) एक दिन में संपन्न करने में सक्षम नहीं हैं, वे दुर्गासप्तशती का पाठ वाकार विधि से कर सकते हैं-
- प्रथम दिवस- केवल प्रथम अध्याय (प्रथम चरित्र)
- द्वितीय दिवस- 2 व 3वा अध्याय (मध्यम चरित्र)
- तृतीय दिवस- चौथा अध्याय (मध्यम चरित्र)
- चतुर्थ दिवस- 5, 6, 7, 8वा अध्याय (उत्तम चरित्र)
- पंचम् दिवस- 9 व 10वा अध्याय (उत्तम चरित्र)
- षष्ठ दिवस- 11वा अध्याय (उत्तम चरित्र)
- सप्तम् दिवस- 12 व 13वा अध्याय (उत्तम चरित्र)
- अष्टम् दिवस- मूर्ति रहस्य, हवन व क्षमा प्रार्थना
- नवम् दिवस- कन्याभोज / भण्डारा इत्यादि।
आप हमारे माध्यम से हमारे निज स्थान मां बिजासन धाम ग्राम फंदा कला में आप नवरात्र में श्री दुर्गा सप्तशती पाठ करा सकते हैं आपकी उपस्थित ना होने पर भी आप हमारे माध्यम से भी कन्या भोज करा सकते हैं हम आपके नाम का संकल्प लेकर विधि विधान से कन्या भोजन करा सकते हैं आप हमसे माता रानी के दरबार मे श्री दुर्गा सप्तशती पाठ (नवचंडी पाठ ) हेतु और कन्याभोज हेतु संपर्क कर सकते हैं।
||जय माता दी||