कालसर्प योग कुंडली मे देखना बहुत सरल है यदि राहु केतु के मध्य सभी ग्रह आ जाए अर्थात एक प्रकार से राहु केतु सभी ग्रह को लॉक कर दे तो काल सर्प योग बनता है । ये 12 भावो के अनुरूप 12 प्रकार से ही बनता है और अन्य ग्रहों की विभिन्न भावों में उपस्थिति के आधार पर ये 250 प्रकार से अधिक भी बताए गए है । जिनके अलग अलग नाम व परिणाम होते है।
वैसे देखा जाए तो पुराने मूल या वैदिक ज्योतिष शास्त्रों में कालसर्प दोष का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है। लेकिन वर्तमान ज्योतिष में इसे प्रमुख स्थान प्राप्त है ।
मानसागरी ग्रन्थ में सर्पदंश योग मिलता है
अध्य्याय 4 श्लोक 125
लग्नाण्य सप्तमस्थाने शन्यको राहुसंयुतौ।
सर्पेण पीडा तस्योक्ता शय्यायां स्वपतोऽपि च ॥
अर्थात
लग्न से सप्तम भाव में शनि , सूर्य और राहु स्थित हों तो विस्तर पर सोते हुये भी सर्प से पीडित होता है । अर्थात् सर्पदंश से व्यक्ति पीड़ित होता है
कालसर्पयोग हमेशा जातक को नुकसान ही नही देता ये योग जिसकी कुंडली मे हो उसे अपार सफलता भी दिलाता है
जातक एकाग्रचित्त होकर कार्य करता है
जातक को कठिन परिश्रम करना पड़ता है जिससे उसके व्यक्तित्व में निखार व अपार सफलताएँ भी प्राप्त होती है ।
जातक निडर व साहसीक होते है
कालसर्प दोष जीवन मे नकरात्मकता भी लाता है लेकिन ज्योतिष उपायों व भगवान शिव की आराधना व अच्छे ईमानदारी से कर्म जातक के कालसर्प दोष के नकारात्मक प्रभाव को सकारात्मक परिणाम में बदला जा सकता है व जातक के लिए ये वरदान बन जाता है ।
जातक को सकारात्मक जीवन जीना चाहिए अपने पर नकारात्मक प्रभावों को प्रबल न होने दे जैसे क्रोध न करें, संयम रखें , बड़ो का सम्मान करें , अपने से छोटो का भी सम्मान करें , आपके नीचे काम करने वाले लोगो का भी सम्मान करें , सात्विक जीवन जीने का प्रयास करे, समयानुसार भगवान शिव का ध्यान पूजन व नियमानुसार रुद्राभिषेक करते रहे । हो सके तो वर्ष में एक बार शिवतीर्थ स्थल (महाकालेश्वर या त्रयम्बकेश्वर) पर रुद्राभिषेक जरूर करे ।
कालसर्प दोष के निवारण हेतु आप उज्जैन या फिर नाशिक मे कालसर्प दोष निवारण पूजा करा सकते है।
आचार्य श्री भरत शर्मा व इनके पूज्य पिताजी पंडित श्री बदामीलाल जी ने माँ बिजासन के आशीर्वाद से ज्योतिष शास्त्र व कर्मकांड कार्य द्वारा अनेको यजमानों को लाभ प्राप्त कराया है, आप भी निसंकोच संपर्क कर सकते है।